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मंदिरों को आज भी क्यों लूटा जा रहा है?


 सनातन हिन्दू धर्म के मंदिर हजारों सालों से हिन्दुओं की आस्था और संस्कृति के केन्द्र रहे हैं। हिन्दू समाज के लोग इन मंदिरों को पल्लवित और पुष्पित करने के लिए सोना, चांदी, जमीन और रुपयों का दान करते हैं। देश में मौजूद लाखों मंदिरों में अकूत धन सम्पदा मौजूद है, जिस पर इतिहास के हर कालखंड के शासकों की नजर रही है, आज भी इस पर सरकारों की नजर रहती है।

इस देश पर होने वाले सभी आक्रमणों में आक्रांताओं ने मंदिरों को खूब लूटा है। मोहम्मद गजनवी द्वारा सोमनाथ के मंदिर की लूट, इतिहास में हुई कई लूटों में से एक है। अंग्रेजों ने भी भारत के मंदिरों के धन पर सरकार का नियंत्रण रखने के लिए कानून बनाए, ये कानून आज भी इस देश में थोड़े बहुत बदलाव के साथ मंदिरों पर थोपे गये हैं।

आइए, आपको बताते हैं कि कैसे कानून के सहारे मंदिरों के प्रबंधन में भेदभाव होता है-

हिन्दूमुस्लिमक्रिश्चियन
पूजा स्थलों पर सरकारों का नियंत्रणहांनहींनहीं
किसी भी पूजा स्थल को सरकार नियंत्रण में ले सकती हैहांनहींनहीं
पूजा स्थलों पर चढ़ावे के धन पर सरकार का नियंत्रणहांनहींनहीं
पूजा स्थलों के प्रबंधन के साथ धार्मिक कार्यों पर सरकार का नियंत्रणहांनहींनहीं
पूजा स्थलों की संपत्ति सरकार बेच सकती हैहांनहींनहीं
पूजा स्थलों की आय पर टैक्सहांनहींनहीं
पूजा स्थलों की आय का उपयोग सरकार किसी और कार्य के लिए कर सकती हैहांनहींनहीं

 

धर्म निरपेक्ष देश में कानून के सहारे जिस तरह से मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरूद्वारे के प्रबंधन में भेदभाव है, उससे हिन्दू धर्म और संस्कृति के अस्तित्व पर काले बादल मंडरा रहे हैं। आज भी मंदिरों के धन पर सरकार की तरफ से प्रबंधन करने वाले कर्मचारियों की नजर रहती है।

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